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भावना को समझ लेते

भावनाओं को समझ कभी लेते।

रुख से पर्दा हटा तभी देते।

ज़िंदगी भी हैं क्या दिन दिखाती।
कभी हँसते तो रो कभी लेते।

भाव मेरे समझ न पाए सितम।
कभी खुश तो गम में कभी होते।

भावना छिपी मन में रह गई।
काश रूबरू हो सके वो तुमस कभी।

थक गए भावनाओं को छिपाकर।
एक बार जज़्बात के दिल बयाँ कर देते।

तस्सवुर में सदा मुस्कराते रहे ।
हकीकत में दिल का हाल पूछ लेते कभी।

ज़र्ब को देखकर क्यूँ दिल अब दुखे।
ज़ख्म देते मसल्लस सदा जब यूँ ही।

आशियाना ढहा एक पल में सही।
होती खबर तो सम्भाल लेते तभी।

आश्ना बन भरम को तोड़ दिया।
अदू होते फासले बरत लेते कभी।

शरर शक की है बला बहुत ही बुरी।
जानते तो दूरी बना लेते कभी।

अलविदा कहते इस महफ़िल को सनम।
यूँ न रुसवाई का ज़हर पीते कभी।

स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'
प्रतियोगिता के लि

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6 Comments

Seema Priyadarshini sahay

05-Dec-2021 01:09 AM

बहुत खूबसूरत

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Zakirhusain Abbas Chougule

03-Dec-2021 12:00 AM

Nice

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